साल 2016-17 के लिए जारी किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम या सभी को दी जाने वाली एक बुनियादी आमदनी की बात कही गई है।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर मनोज पंत इसे कुछ इस तरह से समझाते हैं, "यूनिवर्सिल बेसिक इनकम एक तरह का बेरोजगारी बीमा है जो हर किसी को नहीं दिया जा सकता। सरकार को इसके लिए कुछ न कुछ तो पैमाने तय करने होंगे."
इस बार के आम बजट से खासकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, खेती-बाड़ी में लगे लोगों, कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को काफी उम्मीदें हैं कि सरकार उनके लिए कुछ करेगी।
बेसिक इनकम :
वरिष्ठ पत्रकार एम के वेणु कहते हैं, "इनमें से कई लोगों की रोजी-रोटी नोटबंदी की वजह से छिनी भी है. अगर प्रधानमंत्री उनके लिए कुछ करते हैं तो लोगों के घावों पर थोड़ा मरहम तो जरूर लगेगा।"
कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार को इसे लागू करने के लिए राजस्व की जरूरत होगी।
मनोज पंत कहते हैं, "हर किसी को बेसिक इनकम देने लायक पैसा तो सरकार के पास नहीं है. सरकार इसे सामाजिक सुरक्षा के तौर पर पेश करना चाहेगी. जैसे असंगठित क्षेत्र में कोई यूनियन नहीं होता और मजदूरी दर पर कोई कंट्रोल नहीं रहता. वहां यह पूरक की तरह काम कर सकती है।
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