राष्ट्रीय आदिवासी उत्सव:
भारत एक ऐसा देश है जो समाज के आधार पर बंटा हुआ है यहां आपको धर्म के आधार पर, वेशभूषा के आधार पर और जाति के आधार पर बंटे लोग साफ़ दिखाई देंगे कुछ ऐसे ही समुह से आते है आदिवासी। “जनजातीय” या आदिवासी अर्ध नग्न, हाथों में तीर और सिर पर पंख लगाएं छवि स्वंय ही विशाल रुप मन में ले आती है।
ये वो लोग है जिन्हें समाज में बुध्दिहीन माना जाता है, जिन्हें हिंदी बोलने और समझने में तकलीफ़ होती है जिनके साथ अक्सर बर्बरता और राक्षसपन दिखाया जाता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षो से इस समुदाय के लोग न केवल शिक्षित बनें है बल्कि अपने समाज के युवाओं और उनके बेहतर भविष्य के लिए सरकार के साथ जुड़ भी रहे है।
अब आदिवासियों को बढ़ावा देने के मकसद से ही भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘राष्ट्रीय जनजातीय कार्निवल’ का आयोजन किया गया। जिसका उद्देश्य आदिवासियों के साथ मेलझोल बढ़ाने के साथ उनकी सांस्कृतिक परंपराओं को बढ़ावा देना है।
क्या है ‘राष्ट्रीय जनजातीय कार्निवल :
राष्ट्रीय जनजातीय कार्निवल’ योजना को अगर एक उत्सव के रुप में देखा जाएं तो गलत नहीं होगा दरअसल इसकी शुरुआत एक पर्व के रुप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजधानी दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में 25 अक्टूबर 2016 को की गई थी। चार दिन चले इस आयोजन में आदिवासी समुदाय ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
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