नमामि गंगे प्रोजेक्ट की 231 योजनाओं में गंगोत्री से शुरू होकर हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबद , बनारस , गाजीपुर , बलिया , बिहार में 4 और बंगाल में 6 जगहों पर पुराने घाटों का जीर्णोद्धार, नए घाट, चेंजिंग रूम, शौचालय, बैठने की जगह, सीवेज ट्रीटमेंट प्लान्ट, आक्सीडेशन प्लान्ट बायोरेमेडेशन प्रक्रिया से पानी के शोधन का काम किया जाएगा। इसमें गांव के नालों को भी शामिल किया गया है। साथ ही तालाबों का गंगा से जुड़ाव पर क्या असर होता है उसे भी देखा जाएगा। इसके प्रोजेक्ट डायरेक्टर कहते हैं कि " गंगा एक्शन प्लान का सारा फोकस सफाई पर था इसमें कोई बुराई नहीं थी उसमे अविरलता की बात नहीं थी बायोडायवर्सिटी की बात नहीं थी उसके अंदर सैनिटेशन की बात नहीं थी हमने इसमें कई चीजें जोड़ी हैं।
प्रोजेक्ट डायरेक्टर नमामि गंगे योजना में अविरलता की बात तो कह रहे हैं पर पूछने पर उसकी कोई योजना नहीं बता पाए सिर्फ गंगा के किनारे उसके सौंदर्य की ही बात कह पाए। जबकि आज गंगा की निर्मलता की कौन कहे उसके बचाने की बात सामने आ रही है। गौरतलब है कि गंगा में हर साल 3000 MLD सीवेज डालते हैं , जिसमें बनारस में 300 MLD सीवेज डाला जाता है। जो आज भी वैसे ही डाला जा रहा है। गंगा में डाले जाने वाले सीवेज में हम सिर्फ 1000 MLD का ही ट्रीटमेंट कर पाते हैं बाकी 2000 MLD सीवेज ऐसे ही बह रहा है जिससे गंगा में गंगा का पानी ही नहीं है। यही वजह है कि जानकार कहते हैं कि पहले गंगा को बचाइए फिर उसकी सुंदरता को देखिए।
प्रो बीडी त्रिपाठी जो विशेषज्ञ सदस्य नेशनल मिशन क्लीन गंगा के हैं, साफ़ कहते हैं कि " गंगा की जो लांगीट्यूडिनल कनेक्टिविटी खत्म होती जा रही है। गंगा नदी होकर तालाब का रूप लेती जा रही है। थोड़ा सा प्रदूषण डालने में उसकी पाचन क्षमता समाप्त होती जा रही है। तो उसके लिए गंगा में पानी छोड़ने की कौन योजना है उसे प्रायरिटी पर लेना चाहिए तभी हमारी समस्या का समाधान हो पाएगा।
गौरतलब है कि गंगा की कुल लम्बाई 2525 किलोमीटर की है। गंगा का बेसिन 1. 6 मिलियन वर्ग किलोमीटर का है , 468. 7 बिलियन मीट्रिक पानी साल भर में प्रवाहित होता है जो देश के कुल जल श्रोत का 25. 2 प्रतिशत भाग है। इसके बेसिन में 45 करोड़ की आबादी बसती है। साथ ही गंगा पांच राज्यों से होकर गुजरती है। इसे राष्ट्रीय नदी भले ही घोषित किया गया हो पर यह राज्यों की मर्जी से ही बहती है। इसलिये इसके रास्ते में कई अड़चनें ज़रूर हैं। पर जिस गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत 1986 में हुई। जिस पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। बाद में वर्ष 2009 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की स्थापना भी गई जिसके चेयरमैन खुद प्रधानमंत्री हैं। इस परियोजना के लिए 2600 करोड़ रुपये वर्ल्ड बैंक से कर्ज ले कर कई योजनाओं की शुरुआत की गई। लेकिन गंगा का मामला जस का तस है। इसी प्राधिकरण ने भविष्य के लिए 7000 करोड़ के नए प्रोजेक्ट की रूपरेखा भी बना रखी है। बावजूद इसके गंगा की हालात वही है। अब एक बार फिर उसे 231 योजनाओं की सौगात मिली है लेकिन इसमें भी गंगा में पानी छोड़ने की कोई बात नहीं है। ऐसे में गंगा क्या बिना पानी के ठीक हो पाएगी यह देखने वाली बात होगी।
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