महात्मा गांधी का कथन था कि ‘‘असली भारत तो गांवों में बसता है और जब तक गांवों का सामाजिक एवं आर्थिक विकास नहीं होगा तब तक भारत का विकास संभव नहीं है।’’ लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि सभी प्रयासों के बावजूद स्वतंत्रता के 68 वर्ष बाद भी देश के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध सुविधाओं की दृष्टि से काफी बड़ा अंतर नजर आता है। इस अंतर को कम करने तथा संतुलित सामाजिक-आर्थिक विकास प्राप्त करने के उद्देश्य से वर्ष 2003 में केंद्र सरकार ने ‘पुरा’ (PURA : Provision of Urban Amenities in Rural Areas) नामक योजना की घोषणा की थी। इस योजना की संकल्पना भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा प्रस्तुत की गई थी। यह योजना प्रायोगिक आधार पर वर्ष 2004 से 3 वर्ष की अवधि तक कार्यान्वित की गई। प्रायोगिक चरण की समाप्ति के पश्चात उससे प्राप्त अनुभवों, मंत्रालयों/विभागों तथा अन्य स्रोतों की समीक्षाओं के आधार पर केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक पुनर्संरचित पुरा योजना प्रतिपादित की। सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान 248 करोड़ रुपये के परिव्यय से इस योजना के कार्यान्वयन को स्वीकृति प्रदान की थी। कई राज्य सरकारों ने इस योजना को लागू करने की घोषणा भी की लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण पुरा योजना अपनी पूर्ण क्षमता के साथ कभी भी कार्यान्वित नहीं हो सकी।
वर्ष 2014-15 के लिए प्रस्तुत केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पुरा योजना हेतु कोई राशि आबंटित नहीं की और इसके स्थान पर एक नए ‘रर्बन मिशन’ (Rurban Mission) को प्रारंभ करने की घोषणा की थी।